आज कल की व्यस्त और दौड़ती भागती जिंदगी में यदि हम अपने लिए कुछ पल भी निकाल लेते है, तो बहुत सुकून अनुभव करते है। व्यस्तता के कारण शरीर और मस्तिष्क की थकान कभी न ख़त्म होने वाली लगती है। व्यक्ति अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाता। परिणामस्वरूप बहुत से रोग शरीर को घेर लेते है। और व्यक्ति समय से पहले ही अपनी ऊर्जा खोने लगता है। यदि आप अपने शरीर और उससे भी अधिक अपने मस्तिष्क को कुछ आराम नहीं देंगे तो ये अधिक समय तक आपका साथ नहीं दे सकते।
दोस्तों हमारी दिनचर्या हमारी जिंदगी पर बहुत अधिक प्रभाव डालती है। हम अपनी सुबह किस प्रकार व्यतीत करते है। पूरे दिन किस प्रकार की ऊर्जा अपने मस्तिष्क और शरीर को प्रदान करते है, इसका हमारे जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता हैं। यदि हम अपनी दिनचर्या में कुछ परिवर्तन करे तो हम अधिक खुश और स्वस्थ्य रह सकते है। इतना ही नहीं हम शारीरिक जो भी कार्य करते है उसका दोगुना परिणाम हमें मिल सकता है।
आज इस आर्टिकल में आप जानेगे की ध्यान क्या है ? दोस्तों ध्यान के विषय में तो आप सभी ने सुना है परन्तु ध्यान वास्तव में है क्या ? ये वर्तमान में कोई नहीं जानता। ध्यान की वास्तविक परिभाषा आजकल पूर्णतः परिवर्तित हो गई है तो आइये जानते है कि ध्यान क्या है एवं ध्यान करने के क्या फायदे है ?
ध्यान एक शब्द मात्र नहीं अपितु एक ऐसा अभ्यास है जिसका अर्थ और परिणाम इस संसार से भी परे है। आजकल ध्यान को अधिक गंभीरता से नहीं लिया जाता। जो वास्तव में योगी है उनका कहना है कि ध्यान लगाना इतना कठिन है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते परन्तु असंभव भी नहीं। यदि हम ठान ले की हमें ध्यान को जानना है तो इसका अभ्यास करना होगा।
किसी के बताने से आप ध्यान की परिभाषा तो समझ सकते है, परन्तु अनुभव तो स्वयं ही करना होगा और इसका अनुभव करने के लिए आपको इस भौतिक शरीर ओर मानसिक सीमाओं से परे जाना पड़ेगा। ध्यान में भौतिक एवं सांसारिक वस्तुओं की कोई भूमिका नहीं है।
यदि आप गहनता से ध्यान का अध्ययन कर इसका अभ्यास करे तो आप इस ब्रम्हाण्ड और इससे भी परे एक लोक जिसे शास्त्रों में परमात्मा का निवास स्थान कहा गया है उसे भी जान सकते है। आत्मा परमात्मा ,जन्म मृत्यु, जीवन का उद्देश्य आपको मनुष्य जीवन क्यों प्राप्त हुआ इन सब के उत्तर आपको स्वतः ही मिलते जायेगे।
जो महान योगी रहे है जैसे - संत कबीर, महावीर , गौतम बुद्ध , परमहंस योगानन्द इन सब का यही कहना था कि ध्यान को शब्दों से नहीं अनुभव से ही समझा जा सकता है। उनके अनुसार ध्यान इतना कठिन नहीं है जितना हमें प्रतीत होता है।
हमें हर वो चीज कठिन व असंभव लगती है जो हमें अपने मन, इच्छाएं और शरीर से परे ले जाती है क्योंकि हम अपने विचारों के दास है। ध्यान के लिए मन को नियंत्रण में करना होगा।
तभी वास्तव में आप अपनाअस्तित्व समझ पाएंगे। मन में जो माया का आवरण है वो पूरी तरह हट जायेगा और आप केवल सत्य को देख रहे होंगे। इसी अवस्था को निर्वाण कहा जाता है। विभिन्न धर्मो में इस अवस्था को विभिन्न नाम दिए गए है।
निर्वाण प्राप्ति में मनुष्य को कितना समय लगता है यह मनुष्य की इच्छाशक्ति, स्वयं के अस्तित्व और सत्य को जानने की चेष्टा पर निर्भर करता है। महापुरुषों ने कहा है की जो ध्यान करना जानता है उसके लिए सब कुछ आसान है।
कोई भी कठिनाई या परिस्थिति हो वह आसानी से पार कर सकता है क्योकि व्यक्ति यह समझ जाता है कि इस संसार में जो भी हो रहा है वो सब क्षणिक है। इसलिए ध्यान करना मनुष्य का मूल धर्म बताया गया है। जब आप ऐसी अवस्था में पहुँच जाये की भूत, वर्तमान और भविष्य का एक भी विचार आपके मन में न आये बस यही अवस्था ध्यान है।
महर्षि पतञ्जलि द्वारा बताये गए अष्टाङ्ग योग का सातवां अंग ध्यान है। योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा का योग
अर्थात जब व्यक्ति आत्मा को परमात्मा से जोड़ लेता है तब इस अवस्था को ही वास्तविक "योग "कहा जाता है।
और इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ध्यान की होती है परन्तु ध्यान तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को आरम्भ के अंग जैसे - यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा आदि में परिपक्व होना चाहिए। तभी ध्यान का वास्तविक अर्थ सिद्ध होता है।
दोस्तों ध्यान से जो ज्ञान प्राप्त होता है उसका प्रभाव आपके संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। हमारी प्रवत्ति हर समय कुछ न कुछ सोचते रहने की है ,हर एक क्षण हम विचाररत है। मन में हलचल सी है, एक कोलाहल है जिसके कारण तो तुच्छ है ,परन्तु ये विचार हमें हर पल दुर्बल बना रहे है और ध्यान हमारी इसी दुर्बलता को दूर करता है।
विचारों की शुद्धता ,मन की विनम्रता और निर्मलता ये सब ध्यान पर ही निर्भर है। व्यक्ति जैसे जैसे ध्यान में उन्नति करता जाता है या यूं कहे कि ध्यान में लाने का अभ्यास जैसे -जैसे दृढ होता जाता है। मन वैसे-वैसे स्थिर होने लगता है, व्यर्थ के विचार स्वतः ही दूर होते जाते है और इस प्रकार आप स्वयं का शुद्धिकरण करते है।जो इस संसार में रहते हुए किसी भी वस्तु या उपाय के द्वारा संभव ही नहीं।
ध्यान करने से मनुष्य स्वयं को एक शरीर के रूप में न देखकर आत्मा के रूप में देखता है और इस प्रकार मन के भ्रमों से भी मुक्ति पाने लगता है। दोस्तों ध्यान लगाने को बहुत लाभकारी बताया गया है। कहा जाता है कि यदि आप अपना दिन ध्यान के साथ आरम्भ करते है तो आप पूरा दिन उर्जात्मक अनुभव करेंगे।
आइये जानते है कि ध्यान लगाने के क्या परिणाम होते है और ये किस प्रकार आपके जीवन में परिवर्तन ला सकते है। ध्यान के विषय में साधारण शब्दों में बात की जाये तो यह विचार, कल्पनायें, अपेक्षाएं, सुख और दुःख आदि के विरुद्ध है। ध्यान आपकी इन्द्रियां नियंत्रण करने में सहायता करता है। क्योंकि मन बुद्धि में और बुद्धि आत्मा में लीन होने लगती है और आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से है सांसारिक बातों से नहीं। इसलिए ध्यान में केवल आनंद का भाव है एक बार जब व्यक्ति ठीक से ध्यान लगाना समझ जाता है फिर किसी सांसारिक कार्य को करते हुए भी वह ध्यान की अवस्था में रह सकता है।
यदि हम बात करे कि ध्यान से आपके जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है तो दोस्तों ध्यान आपकी ऊर्जा को इतना प्रभावशाली बना देता है कि लोग आपके साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करना पसंद करते है। आपका ऑरा इतना मजबूत हो जायेगा की लोग आपकी तरफ खीचें चले आएंगे।
और social life अच्छी होने से जीवन में तनाव कम होता है ध्यान आपको इतना स्थिर बना देता है कि यदि कोई आपको कड़वे शब्द भी बोल दे तो भी इसका आप पर कोई प्रभाव नहीं होगा। प्रतिदिन ध्यान करने से मन में उठ रहे अनावश्यक और व्यर्थ के विचारों को आप अनदेखा करना सीख जाते है और धीरे धीरे इससे मुक्ति पाने लगते है। मेडिटेशन करने से आपका शरीर इतना स्वस्थ्य रहता है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
आजकल के व्यस्त जीवन में हर छोटी बात के कारण तनाव हो जाता है जो भयानक बिमारियों का कारण भी बन सकता है। ध्यान करने से आप पूरी तरह स्ट्रेस से दूर रहते है। कोई भी कठिनाई या परेशानी होने पर चिंताग्रस्त होने के स्थान पर उसका हल ढूढ़ने का हर संभव प्रयास करते है। साथ ही नियमित ध्यान करने से ब्लडप्रेशर की समस्या भी ख़त्म हो जाती है। इसके अतिरिक्त मांसपेशियों में खिचाव ,अस्थमा ,पीठ का दर्द और मधुमेह जैसी समस्याओं का हल भी है ध्यान।
ध्यान व्यक्ति के मन से अहम्, ईष्या, कुंठा, निंदा अदि भाव समाप्त कर देता है। संसार में रहते हुए एक स्थिर मन का व्यक्ति किसी वस्तु पर अपना अधिकार करने से संकोच करता है क्योकि उसे यह ज्ञात हो जाता है की हमारा सम्बन्ध शरीर से नहीं अपितु आत्मा से है।और आत्मा का किसी भी सांसारिक वस्तु से कोई सम्बन्ध नहीं होता।
ध्यान से व्यक्ति को इस स्तर का ज्ञान हो जाता है कि वो यह समझ पाने में सक्षम हो जाता है की इस चक्र में व्यक्ति के प्रारब्ध में जितना है उतना मिलेगा ही। व्यक्ति को केवल कर्म करते रहना है। सांसारिक बंधनों में उलझकर हम अपनी आत्मा को कष्ट पहुंचाते है और जीवन को सार्थक करने के स्थान पर इसे व्यर्थ कर देते है।
अहम् ,ईर्ष्या ,कुंठा जैसे भाव मन से निकल जाने से हमारा शुद्धिकरण होता है और हम अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ने का दृढ प्रयास करते है। ध्यान करने से हम किसी भौतिक वस्तु नहीं अपितु स्वयं की खोज करते है और व्यक्ति जब स्वयं का अर्थ समझ लेता है तो वह जीवन को साध लेता है।
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