भगवान को पाने का सबसे सरलतम साधन क्या है ?

 भगवान को पाने का सबसे सरलतम साधन क्या है ?



प्यारे साधको , भगवान को पाने का सबसे सरलतम सबसे श्रेष्ठ और परम आनंददायक मार्ग जिसका वर्णन स्वयं कमलनयन भगवान  श्री कृष्ण ने  उद्धव जी से भागवत महापुराण के ग्यारहवे स्कन्ध के २९ वे अध्याय में किया है 

 उसी को हम इस लेख में समझेंगे 


उद्धव जी भगवान श्री कृष्ण से पूछते है कि,अच्युत मन को वश में करना अत्यंत कठिन है अतः आप कोई ऐसा  सरल एवं सुगम साधन बताइये जिससे मनुष्य अनायास ही परमपद प्राप्त कर सके। 


प्यारे साधको , भगवान श्री कृष्ण ब्रम्हा आदि ईश्वरों के भी ईश्वर है। वे ही सत्व रज तम गुणों के द्वारा ब्रम्हा विष्णु रूद्र का रूप धारण कर के जगत की उत्त्पत्ति,स्थिति आदि के खेल खेला करते है। 


जब उद्धव जी ने अनुराग भरे चित्त से उनसे यह प्रश्न किया तब उन्होंने मंद  मंद मुस्कुराकर  बड़े प्रेम से कहना प्रारम्भ किया 


भगवान श्री कृष्ण ने कहा - प्यारे उद्धव मेरी प्राप्ति के जितने साधन है उनमे से  तो मै सबसे श्रेष्ठ साधन  यही समझता हूँ कि समस्त प्राणियों और पदार्थों में मन वाणी और शरीर की समस्त वृत्तियों से मेरी ही भावना की जाय। 


उद्धव जी मेरे भक्त को चाहिए कि वो अपने सारे कर्म मेरे लिए ही करे और धीरे धीरे उनको करते समय मेरे स्मरण का अभ्यास बढ़ाये कुछ ही दिनों में उसके मन और चित्त मुझमे समर्पित हो जायेंगे  उसके मन एवं आत्मा मेरे ही कर्मों में रम जायेंगे। 


मेरे भक्त साधुजन जिन पवित्र स्थानों में निवास करते हो उन्ही में रहे और देवता असुर अथवा मनुष्यों में  जो मेरे अनन्य भक्त हो उनके आचरणों का अनुसरण करे पर उनकी अवसरों पर सबके साथ मिलकर अथवा अकेला ही नृत्य गान बाद्य आदि महराजोचुत्य ठाठ -बाट से मेरी यात्रा अदि के महोत्सव करे  


शुद्धअंतःकरण पुरुष , आकाश के सामान बाहर और भीतर परिपूर्ण एवं आवरण शून्य मुझ परमात्मा को ही समस्त प्राणियों और अपने हृदय में स्थित देखे। 


निर्मल बुद्धि उद्धव जी, जो साधक केवल इस ज्ञान दृष्टि का आश्रय लेकर सम्पूर्ण प्राणियों और पदार्थों में मेरा दर्शन करता है वो उन्हें मेरा ही स्वरुप मानकर सत्कार करता है तथा ब्राम्हण और चाण्डाल , चोर और ब्राम्हण भक्त , सूर्य और चिंगारी तथा कृपालु एवं क्रूर में सामान दृष्टि रखता है  उसे ही सच्चा ज्ञानी समझना चाहिए। 


जब निरंतर सभी नर नारियों में में मेरी ही भावना की जाती है तब थोड़ी ही दिनों में साधक के चित्त से स्पर्धा अथवा क्रोध  ,ईर्ष्या,तिरस्कार और अहंकार आदि दोष दूर हो जाते है। अपने ही लोग यदि इसे करे तो उन्हें करने दे इसकी परवाह न करे।  मै अच्छा हूँ ,यह बुरा है ऐसी देह दृष्टि को और लोक लज्जा को छोड़ दे। और कुत्ते , चांडाल,  गौ एवं  बधिक को भी  मन ही मन नमन करे। 


भगवान कहते है कि , जब तक समस्त प्राणियों में मेरी भावना भगवतभावना न होने लगे तब तक इस प्रकार से - मन वाणी और शरीर के सभी संकल्पो और कर्मों द्वारा मेरी उपासना करता रहे। उद्धव जी जब इस प्रकार सर्वत्र आत्म बुद्धि, ब्रम्ह्बुद्धि का अभ्यास किया जाता है तब थोड़ी ही दिनों में उसे ज्ञान होकर सबकुछ ब्रम्हस्वरूप दिखने लगता है। ऐसी दृष्टि हो जाने पर सारे संदेह संशय अपने आप निवृत्त हो जाते है। और वो सब कही मेरा साक्षात्कार  करके संसारदृष्टि से उपराम हो जाता है। 


मेरी प्राप्ति के जितने साधन है उनमे से तो सबसे श्रेष्ठ साधन मैं तो यही समझता हूँ कि, समस्त प्राणियों और पदार्थों में मन,वाणी और शरीर की समस्त वृत्तियों से मेरी ही भावना की जाए। उद्धव जी यही मेरा अपना भागवत धर्म है, इसको एकबार आरम्भ कर देने के बाद फिर किसी प्रकार की विघ्न बाधा से इसमें रत्तीभर भी अंतर नहीं पड़ता क्योंकि यह धर्म निष्काम है और स्वयं मैंने ही इसे निर्गुण होने के कारण सर्वोत्तम निश्चय किया है।  


भागवत धर्म में किसी प्रकार की त्रुटि पड़नी तो दूर रही , यदि इस धर्म का साधक भय , शोक आदि के अवसर पर होने वाली भावना और रोने पीटने, भागने जैसा निरर्थक कर्म भी निष्काम भाव से मुझे समर्पित कर दे तो वे भी मेरी प्रसन्नता के कारण धर्म बन जाते है। विवेकियों के विवेक और चतुरयों के चतुराई की पराकाष्ठा इसी में है कि वे इस विनाशी और असत्य शरीर  के द्वारा मुझ अविनाशी एवं सत्य तत्व को प्राप्त कर ले। 


उद्धव जी यह सम्पूर्ण ब्रम्ह विद्या का रहष्य मैंने संक्षेप और विस्तार से तुम्हे सुना दिया इस रहस्य को समझना मनुष्यों कि तो कौन कहे देवताओं के लिए भी अत्यंत कठिन है। मैंने जिस सुस्पष्ट और युक्तियुक्त ज्ञान का वर्णन बार बार किया है उसके मर्म को जो समझ लेता है उसके हृदय की संशय वृत्तियाँ छिन्न भिन्न हो जाती है और वह मुक्त हो जाता है। 


मैंने तुम्हारे प्रश्न का भलीभांति खुलासा कर दिया है जो पुरुष हमारे प्रश्न उत्तर को विचारपूर्वक धारण करेगा, वह भेदों के भी परम रहस्य सनातन परब्रम्ह को प्राप्त कर लेगा। जो पुरुष मेरे भक्तोंको  इसे भलीभांति स्पष्ट करके समझायेगा उस ज्ञानदाता को मैं प्रसन्न मन से अपना स्वरुप तक दे डालूंगा उसे आत्म ज्ञान करा दूंगा। उद्धव जी यह तुम्हारा और मेरा संवाद स्वयं तो परम पवित्र है ही, दूसरों को भी पवित्र करने वाला हैं। 


जो प्रतिदिन इसका पाठ करेगा और दूसरो को सुनाएगा वह इस ज्ञान दीप के द्वारा दूसरो को मेरा दर्शन कराने के कारण  पवित्र हो जायेगा। जो कोई एकाग्र चित्त से इसे श्रद्धापूर्वक नित्य सुनेगा उसे मेरी प्राप्ति होगी। और वह कर्म बंधन से मुक्त हो जायेगा। प्यारे उद्धव तुम इसे दाम्भिक, नास्तिक,शठ, अश्रद्धालु ,भक्तिहीन और उद्यत पुरुष को कभी मत देना। जो इन दोषों से रहित हो  'ब्राम्हण भक्त हो, प्रेमी हो ,साधु स्वाभाव हो और जिसका चरित्र पवित्र हो उसी को यह प्रसंग सुनना चाहिए। 


यदि शूद्र और स्त्री भी मेरे प्रति प्रेम भक्ति रखते हो तो उन्हें भी इसका उपदेश करना चाहिए जैसे दिव्यामृत पान कर लेने पर कुछ भी पीना शेष नहीं रहता वैसे ही यह जान लेने पर जिज्ञासु के लिएऔर कुछ भी जानना शेष नहीं रहता। प्यारे उद्धव जिस समय मनुष्य समस्त कर्मों का परित्याग करके  मुझे आत्मसमर्पण कर देता है उस समय वह मेरा विशेष माननीय हो जाता है। और मैं उसे उसके जीवत्व से छुड़ाकर अमृतस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति करा  देता हूँ। और वह मुझसे मिलकर मेरा स्वरुप हो जाता है। 


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