दुःख का कारण क्या हैं ?

दुःख का कारण क्या हैं ?

 एक व्यक्ति ने महात्मा बुद्ध से पूछा, कि मेरी जिंदगी में इतने दुःख क्यों है ? इतनी तकलीफ़े क्यों है? इतनी परेशानियां क्यों है ? तब महात्मा बुद्ध ने उससे कहा - बताओ तुम्हें कौन सा दुःख है ? तब उसने कहा मैं अपने कितने दुःख आपसे बताऊ। मेरी पूरी जिंदगी ही दुःखों से भरी हुई हैं। जो मेरे रिश्ते हैं, उन रिश्तों से भी मैं दुःखी हूँ और मेरे शरीर मे भी बीमारिया होती रहती हैं। एक के पीछे एक दुःख लगा ही रहता है। उस व्यक्ति ने कहा कि न तो मैं अपने रिश्तों से खुश हूं, न अपने परिवार से खुश हूं, न अपने मन से खुश हूं और न ही अपनी जिंदगी से खुश हूं। लगता है, ऐसी जिंदगी से अच्छा है कि मैं मर जाऊ, कोई मतलब ही नहीं जीने का। तो महत्मा बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा कि बताओ तुम्हारे इन सारे दुखों का  क्या कारण है ? वो व्यक्ति महात्मा बुद्ध से कहने लगा कि मैं आपके पास इसीलिए तो आया हूं कि आप बताओ मेरी जिंदगी में इतने दुःख क्यों हैं? इन सब का क्या कारण हैं ? महात्मा बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा जरा गहराई से सोचों, विचार करो, देखो कहा है तुम्हारा दुःख। क्या कारण हो सकता हैं तुम्हारे दुःख का ? उस व्यक्ति ने बहुत सोचा, पर जब उसे क़ुछ समझ नही आया, तब बुद्ध ने उसे उत्तर दिया, कि तेरे सारे दुःखों का कारण तू ही है, तेरे मन की आसक्ति है, तेरे मन का मोह है।


उस व्यक्ति ने बुद्ध से कहा कि मैं समझा नहीं, कि मेरे मन का मोह हर दुःख का कारण कैसे हो सकता है ? तो महात्मा बुद्ध ने उसे तीन छोटी छोटी कहानियां सुनाई।

पहली कहानी- एक व्यक्ति पेड़ से चिपककर चिल्ला रहा था कि कोई मुझे बचाओ , कोई मुझें इस पेड़ से छुड़ाओ, इस पेड़ ने मुझें पकड़ लिया है, तो वहाँ से एक गुरु और शिष्य गुजरे , उस शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि गुरुदेव! इस आदमी की मदद करनी चाहिए ये इस पेड़ से चिपक गया है। इसे छुड़ाना चाहिये, तो उसके गुरु ने अपने शिष्य से कहा-कि इसकी मदद कोई नही कर सकता, तो वह शिष्य हैरान होकर पूछ्ने लगा, कि ऐसा क्या है कि इसकी मदद कोई नही कर सकता । गुरु ने कहा- इस व्यक्ति ने खुद ही पेड़ को पकड़ लिया है, और जिस इंसान ने खुद ही किसी चीज को पकड़ा हुआ है उसे कौन छुड़ा सकता है,उसे कौन बचा सकता है। ऐसे ही बुद्ध ने कहा-तुमने भी सारे दुखों को खुद ही पकड़ा है । ये मेरा हैं ,ये छूट न जाये , ये मेरे पास रहना चाहिए , ये मुझे मिलना चाहिए और तेरे सारे दुखों का कारण ये 'मैं' और 'मेरे' का बंधन है।

 फिर बुद्ध ने उसे दूसरी कहानी सुनाई कि जैसे एक मकड़ी वो खुद ही जाला बुनती है, और जाला बुनते बुनते एक दिन ऐसा आता है, कि वो उस जाले में खुद ही फस जाती है। वो चाहकर भी उस जाले से बाहर नहीं निकल पाती है। ऐसे ही तूने भी अपनी जिंदगी में कितने ही रिश्ते बनाये है, कितनो से मोह लगाया है, कितनो को अपना माना है, और उनमें मोह रखने के कारण आज वो तुझे दुख दे रहे हैं। सारी दुनिया में कुछ भी होता रहे हमें दुख-सुख नही होता है। हमे दुख सुख कब होता है? जब हमारे अपने के साथ कुछ होता है या हमारा अपना हमारे साथ कुछ करता है, फिर महात्मा बुद्ध ने उसे तीसरी कहानी सुनाई।

शहद से भरे हुए एक पात्र में एक उड़ती हुई मक्खी घुस जाती है। उस शहद के मीठे रस में उसे बहुत आनंद आता है। वह बहुत प्रसन्न होती रहती है और अगर वो चाहे तो थोड़ा सा शहद का रस लेकर के वहाँ से उड़ सकती है, लेकिन उस रस में वो इतना डूब जाती है, इतना खो जाती है कि वो वहाँ से उड़ना ही नही चाहती। और उस रस को लेते लेते उसके पंख उसी शहद में फस जाते है। फिर जब तक उसका पेट भरता है वो बुरी तरह से उस शहद में फस जाती है, फिर वो वहाँ से निकलने की बहुत कोशिश करती हैं, आगे जाती है, पीछे जाती है, दायें जाती है, बायें जाती है, पर वो वहाँ से उड़ नही पाती हैं। वो फस जाती है उसी में ही। ऐसे ही तूने भी अपनी जिंदगी में जिन रिश्तों में आनंद लिया, सुख लिया, शुरू-शुरू में तो तुझे बहुत सुख आया और आज तुझे वही रिश्ते दुख दे रहे हैं। ऐसे ही जब कोई व्यक्ति स्वास्थ्य की परवाह न करके स्वादिष्ट रसों के पीछे पड़कर कुछ भी खाने लगता है तो आगे चलकर उसका शरीर खराब हो जाता है।उसके शरीर में रोग आ जाते हैं। ऐसे ही जब मन संसार की बहुत सारी आशाएं कर लेता है, तृष्णाएँ और वासनाये कर लेता है तो उसके मन मे धन का लोभ आ जाता है और फिर चाहे उसे कितना ही धन मिलता रहे उसकी तृप्ति कभी भी नही होती। वह हमेशा धन से अतृप्त रहता है। और फिर इससे उसके मन मे दुख का जन्म होता हैं।फिर उस व्यक्ति को अहसास हुआ कि महात्मा बुद्ध बिल्कुल सही कह रहे हैं। यही वजह है मेरे सारे दुखों की, मेरे सारे दुख मेरी ही वजह से पैदा हुए है, मेरे ही मन के मोह (attachment) से पैदा हुए है। फिर उसने महात्मा बुद्ध से दूसरा प्रश्न किया । कि आपने ने मुझे कारण तो बता दिया अब आप मुझे इसका उपाय भी बताइये।

महात्मा बुद्ध ने कहा! अगर तुम सारे दुखों से पार होना चाहते हो तो अपने मन को मोह और वासनाओं से ऊपर उठाकर प्रेम और संतोष से भर दो। क्योंकि जिसके हृदय मे प्रेम और संतोष का दिया जल गया उसके मन से मोह और वासनाओं से जन्मे हुए दुख का सारा अंधकार ही दूर हो जाता है। हालांकि ये बात कहने में बहुत ही आसान है लेकिन करना बहुत मुश्किल है। लेकिन जो भी व्यक्ति महात्मा बुद्ध के इस उपदेश को समझ गया, वो सारे दुखों से पार हो जाएगा। यही कहानी हमारे भी जीवन की है, हम खुद ही रिश्ते जोड़ते है और बाद में खुद ही रोते रहते हैं। हम खुद ही प्रेम बढ़ाते है और बाद में खुद ही दुख पाते हैं। हम जिनके पीछे मेरा मेरा करके मरते रहते हैं, अखिर में वही लोग हमें सबसे ज्यादा दुख पहुंचाते हैं। हमारा दिल दुखाते हैं। जिनकी खुशी के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हो जाते है, जिनकी खुशी के लिए हम अपनी सारी जिंदगी कुर्बान कर देते हैं,अखिर में वही हमारी जिंदगी में दुःखो का अन्धकार भर देते हैं। चाहे वो हमारा परिवार हो, हमारे मित्र हो, या हमारी संतान हो या कोई भी रिश्ता हो, जहां पर भी हमने मन के मोह के, आसक्ति के attachment के धागे बाँध रखे हैं। आप गौर करना आपके जीवन मे सारा दुख वही से आ रहा हैं। तो जो उपाय महत्मा बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा मोह और वासनाओं को त्यागकर के अपने हृदयँ में प्रेम और संतोष को भर दो। इस छोटे से उपदेश को अगर हम भी अपनी जिंदगी में उतार लें तो विश्वास रखना, हम जिंदगी के सारे दुःखो से अवश्य पार हो जाएंगे। 




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