प्रभु की शरण

 
एक वृद्ध व्यापारी था। रोज कहा करता था - मुझे भगवान बुला ले तो मै उसके पास चला जाऊ। एक दिन भगवान का दूत आया और बोला -चलिये ,आपको भगवन ने बुलाया है। व्यापारी के लिए यह अप्रत्याशित था। वह तो अन्य लोगों की देखा-देखी  कहा करता था। भगवन के पास जाने की इच्छा उसकी वास्तव में नहीं थी। उसने एक बहाना बनाया -भैया,तुम भगवान का सन्देश लेकर आये हो,यह तो बहुत अच्छी बात है,लेकिन अभी मेरा बेटा छोटा है। वह व्यापार का काम-काज सम्भाल ले तब मैं चलूँगा। तुम तीन साल बाद आ जाना। दूत चला गया। 
      तीन साल बाद वह फिर आया। व्यापारी ने फिर कोई बहाना कर दिया। इस तरह बहाना करते -करते वह नहीं थका। लेकिन दूत आते-आते थक गया। उसने आना बंद कर दिया। व्यापारी का शरीर दिन-ब -दिन कमजोर होता जा रहा था ,लेकिन घर-बार और संसार का मोह उसे भगवान के पास जाने से रोक रहा था। अंत में जीवन के कष्ट मौत के कष्ट से भी अधिक बड़े हो गए तो उसने कूच किया।
        लोग पूजा-पाठ करते है,भजन करते है, घंटो ध्यान -आराधना करते हैं। कोई धन की प्राप्ति के लिए, कोई संतान की प्राप्ति के लिए तो कोई अन्य भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए भगवान की पूजा- अर्चना करता है। लेकिन भगवान को पाने के लिए , सचमुच उसके पास जाने के लिए विरला ही भजन-पूजन करता है।
यह भी सब को पता है कि आदमी खाली हाथ इस दुनिया में आता है और खाली हाथ ही वापस जाता है। यह भी पता नहीं चलता कि कोई कहां से आया है और कहां जायेगा।फिर भी वह संसार में रहते हुए माया -मोह का त्याग नहीं कर  सकता। इसका त्याग किये बिना उसे परमात्मा कैसे मिल सकता है। जिस व्यक्ति की आत्मा परमात्मा को प्राप्त कर लेती है, फिर उसे और किसी चीज को प्राप्त करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।  लेकिन भौतिक सुखों का त्याग किये बिना, संसार के मोह का त्याग किये बिना परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। यही जीवन और मृत्यु का सत्य है। 

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