मासूम दिल में है प्रभु का वास

ईश्वर सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है। प्राणी मात्र के हृदय में परमात्मा की सत्ता विराजमान है। इस समस्त जगत को निराकार भगवान अपनी माया से नचा रहा है, जैसे किसी वस्तु को घूमने वाले यंत्र के ऊपर रखकर घुमा दिया जाए वैसे ही संसार निरंतर गति करता है।

इस अखंड ब्रम्हांड में असंख्य ग्रह नक्षत्र हैं। लेकिन विधाता स्वयं गति में ना आकर सब को गतिशील बनाए हुए हैं। छोटा सा बीज वृक्ष बनता है, वृक्ष से अनेक बीज उत्पन्न होते हैं और यह क्रम लगातार चलता रहता है हर बूंद सागर बनने के लिए प्रयास करती है प्रयास के फल स्वरूप सागर में मिल जाती है और सागर फिर अपने हिस्से (बूंद) को बूंद बना देता है
        मानव मन में उठती हुई विचार तरंगों के माध्यम से भगवान इंसान को आकाश छूने की प्रेरणा देता है। 
इंसान प्रयास करता है, सफल भी होता है और असफल भी हो जाता है। सफलता सुख देती है और असफलता दुःख। लेकिन वह सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान सत्ता सुख और दुःख दोनों परिस्थितियों में समान भाव से रहती है। इंसान के अंदर जहां चेतन तत्व रहता है, वहां परम चेतन तत्व भी निवास करता हैं। जो घर में बैठा है उसे बाहर खोजने की क्या जरूरत हैं?
         मनुष्य अल्पज्ञ है, परमात्मा सर्वज्ञ हैं। अल्पज्ञता के कारण इंसान भगवान को पाने का सार्थक प्रयास न करके निरर्थक खोज करता है। अक्सर देखा जाता है -बनारस में रहने वाला व्यक्ति हरिद्द्वार में जाकर भगवान् को ढूंढता है। हरिद्द्वारवाला उज्जैन में और उज्जैन वाला मथुरा में भगवान के दर्शन सुलभ समझता है। 


          इसी तरह बदरीनाथ में रहने वाले व्यक्ति की दौड़ रामेश्वर की ओर है, रामेश्वर वाला अमरनाथ जाना चाहता है और अमरनाथ वाला केदारनाथ की ओर भागता है। इंसान अंदर से बाहर की और भागता है,केंद्र से परिधि की ओर  दौड़ लगाता है। लेकिन उसका लक्ष्य अगर परिधि से केंद्र की ओर बने तो दिव्य दर्शन की सम्भावना है। अन्यथा मंजिल तय करते-करते जीवन की सांझ हो जाएगी और लक्ष्य दिखाई भी नहीं देगा। 
   
       
   ईश्वर को पाने के लिए अपने अन्तस्थ के द्वार को खोलना पड़ेगा। स्वामी रामतीर्थ ने लिखा था - किसी गृहस्थ की पत्नी अपने मायके गई हुई थी। पति अपनी पत्नी को बुलाने के लिए पत्र प्रेषित कर रहा था। उसने अनेक संवादयुक्त वाक्य लिखे की तुम आ जाओ, अब तक तो तुम्हें आ जाना चाहिए था आदि -आदि बाहर आँधी -तूफ़ान चल रहा था, पत्नी बाहर से द्वार खटखटा रही थी। लेकिन उसको यह लगा कि तेज  हवा के झोंके दरवाजे को हिला रहे हैं। 
              अंत में पत्नी जब हार-थक कर वापस जाने लगी ही थी की उसने द्वार ठीक से बंद करना चाहा तो पाया की पत्नी अंदर आने की प्रतीक्षा कर रही है। स्वामी रामतीर्थ ने इस सूफी कथा के द्वारा  यह समझाने का प्रयास किया है की जिसको तुम पूजा-पाठ के द्वारा या कर्म काण्ड और तीर्थों के द्वारा पाना चाहते हो, उसके लिए बस अपना दरवाजा खोलने की जरूरत है, वह मिल जाएगा। 
    
    
  
                                                                                                        (स्वामी अवधेशानंद गिरी ) 

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