प्रसन्नचित रहने से बढ़ती है जीवन ऊर्जा

जीवन ऊर्जा पर मन अथवा वातावरण का कैसा प्रभाव पड़ता है, इसे हम स्वयं अनुभव कर सकते हैं| कभी आप फूलों से भरे किसी उद्यान में घंटे 2 घंटे बैठे तो आपको स्वता पता चल जाएगा कि मन में नई शक्ति का संचार हो रहा है| जिस मानसिक स्थिति में आप वहां गए थे लौटते समय वैसी मानसिक स्थिति नहीं रहती|
इसका कारण यह है उद्यान में जाते समय जो जीवन ऊर्जा मूर्छित थी अब लौटते समय प्राणवान बन गई है| उसी तरह अगर दुख के क्षणों में आप निराश हैं तो आपकी जीवन ऊर्जा नष्ट होने लगती है और कभी सुख का वातावरण हो सभी लोग प्रसन्न और नाचते गाते हुए हैं तो आप देखेंगे कि आपके शरीर में काफी स्फूर्ति और शक्ति आ गई है| यह शक्ति कहां से आ रही है, अभी आप ने कोई विटामिन की गोली तो ली नहीं फिर आपके शरीर में यह चमत्कार कैसे हो रहा है|
इसका एक ही कारण है कि सुख के वातावरण एवं प्रसन्नता के काल में जीवन ऊर्जा काफी तेजी से बढ़ने लगती है| इसलिए यह मान लेना चाहिए कि जैसा हमारा मन होगा वैसे ही हमारी जीवनशक्ति रहेगी|
गांव में लोग अधिक प्रसन्न एवं स्वस्थ रहते हैं, क्योंकि वह चिंता नहीं करते| भोजन करते हैं विश्राम करते हैं चौपाल में बैठकर गीत गाते हैं और हमेशा प्रसन्न रहते हैं|  उन्हें इस बात की चिंता नहीं होती कि यह दुनिया कैसे चलेगी, देश कैसे चलेगा| पता नहीं कल क्या होगा, इसकी चिंता वह नहीं करते| वह हमेशा वर्तमान में जीते हैं भविष्य की चिंता से शरीर को नहीं जलाते
दूसरी और शहरों में लोग बहुत ही प्रबुद्ध होते हैं, वह हमेशा देश दुनिया समाज और भविष्य की चिंता करते रहते हैं| ऐसे लोग दूसरों के कारण चिंतित होकर बीमार हो जाते हैं और जीवन ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं| मुझे तो लगता है कि बहुत प्रबुद्ध होना बहुत बुद्धिमान होना भी शरीर के लिए नुकसानदेह है, क्योंकि जो लोग साधारण किस्म के हैं वे  अकारण चिंता नहीं करते| 

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